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सुहुम पुढवि काइय एगिदिय पओग परिणया एवं चेव जे अपजत्ता बादर पुढविकाइय एगिदिय पओग परिणया एवं चेव, एवं पजत्तगावि, एवं चउक्कभेएणं जाव वणस्सइ काइय एगिदिय पओग परिणया । जे अपजत्ता बेइंदिय पओग परिणया ते जिभिदिय फासिदिय पओग परिणया, जे पजत्ता बेइंदिय पओगपरिणया। एवं चेव एवं जाव चउरिंदिय पओग परिणया नवरं एककं इंदियं वड्डेयव्वं ॥ जे अपजत्ता रयणप्पभा पुढवि नेरइय पंचिंदिय पओग परिणया ते साइंदिय चक्खिदिय घाणिंदिय जिभिदिय फासिदिय पओग परिण या ॥ एवं पज्जत्तगावि एवं सव्वे
भाणियन्वा ॥ तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय पओग परिणया। मणुस्स पंचिंदिय पओग . वैसे ही अप्काय, तेउकाय वाउकाय व वनस्पतिकाय में जानना. पर्याप्त व अपर्याप्त बेइन्द्रिय रसनेन्द्रिय
व स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत है. पर्याप्त व अपर्याप्त तेइन्द्रिय घाण, रसना व स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत है. ० पर्याप्त व अपर्याप्त चतुरेन्द्रिय चक्षु, घ्राण, रसना व स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत है. सातों नरक के नारकी, | संमच्छिम व गर्भज जलचर, चतुष्पद स्थलचर, उरपरिसर्प व भुजपरिसर्प स्थलचर, खेचर व मनुष्य के
पर्याप्त व अपर्याप्त वैसे ही दश भुवनपति, आठ वाणव्यंतर, पांच ज्योतिषी, वैमानिक में सर्वार्थ सिद्ध तक।
११403 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
१ आठवां शतकका पहिला उद्देशा gost
भावार्थ