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________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी अच्चुअकप्पोबवण्णग वेमाणिय देव पंचिंदिय पओग परिणया ॥ एवं हेडिमगेवेज्जग - कप्पातीय वेमाणिय देव पंचिंदिय पओग परिणया जाव उवरिम गेवेजग कप्पातीय वेमाणिय देव पचिंदिय पओग परिणया ॥ एवं विजय अणुत्तरोववाइय कप्पातीय वेमाणिय देव पंचिंदिय पओग परिणया जाव सव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइय कप्पातीय . वेमाणिय देव पंचिंदिय पओग परिणया, एकेके दुयभेया भाणियव्वा ॥ जाव जेयपजत्ता सब्बट्टसिद्ध अणुत्तरोरवाइय कप्पातीय माणिय देव पंचिंदिय पओग परिणया ते वेउब्धिय तेया कम्मासरीर पओग परिणया दंडओ ॥ ५ ॥ जे अपजत्ता सुहुम पुढविकाइय एगिदिय पओग परिणया ते फासिंदिय पओग परिणया । जे पजत्ता । उदारिक, वैक्रेय, आहारक, तेनस व कार्माण ऐसे पांचों शरीर जानना. भुवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक में सर्वार्थ सिद्ध पर्यंत पर्याप्त व अपर्याप्त में वैकेय तेजस व कार्माण एसे तीन शरीर पाते हैं. यह शरीर का तीसरा दंडक हुवा ॥ ५ ॥ अब इन्द्रियों आश्रित चतुर्थ दंडक कहते हैं. जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत है वे स्पर्शेन्द्रिय प्रयोग परिणत है. ऐसे ही पर्याप्त मूक्ष्म पृथ्वीकाय, अपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय, पर्याप्त बादर पृथ्वीकाय का जानना, पृथ्वीकाय में जैसे चार भांगे कहे, *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी * भावार्थ ।
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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