SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1033
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 8.9 442 १०.३ पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र यव्वा ॥ जे सम्मुच्छिम मणुस्स पंचिंदियप्पओग परिणया, ते ओरालय तेया कम्म सरीरप्पओग परिणया, एवं गब्भवक्कंतियावि अपज्जत्तगा ॥ पज्जत्तगावि एवं चेव, नवरं सरीरगाणि पंचभाणियव्वाणि ॥जे अपजत्ता असुर कुमार भवणवासीदेव पंचिंदिय पओग परिणया जहा णेरइय पंचिंदिय पओग परिणयावि, तहेव एवं पजत्तावि, एवं दुपएणं भेएणं जाव थणिय कुमार भवणवासीदेव पंचिंदिय पओग परिणया ॥ एवं पिसायदेव पंचिंदिय पओग परिणया जाव गंधव्वदेव पंचिंदिय पओग परिणया । चंदविमान जोइसिय देव पंचिंदियपओगपरिणयाजावताराविमाण जोइसिय देव पंचिंदिय पओग परिणया, एवं सोहम्मकप्पोववण्णग वेमाणिय देव पंचिंदिय पओग परिणया जाव मूच्छिम जलचर पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत, पर्याप्त संमूच्छिम जलचर पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत, व अपर्याप्त गर्भन नलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच में तीन शरीर व पर्याप्त गर्भज जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय में उदा-og रिक, वैक्रेय तेजस व कार्माण ऐसे चार शरीर जानना. जैसे जलचर के चार आलापक कहें वैसे ही चतु-XI पद उरपरिसर्प. भुजपरिसर्प, खेचर में चार २ आलापक जानना. संमूछिम मनुष्य में व अपर्याप्त गर्भज मनुष्य में उदारिक, तेजस व कार्माण ऐसे तीन शरीर और पर्याप्त गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय में । आठवा शतकका पाइला उद्देशाgi.p - भावार्थ 100
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy