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सूत्र
भावार्थ
403 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
उब्विय तेया कम्मा सरीर प्पओग परिणया एवं पज्जत्तम रयणप्पभा पुढवि नेरइय पंचिदिय पओग परिणयावि, एवं जाव अहे जे पजत्ता पजत्तग सत्तमा पुढवि नेरइय पंचिदियप्पओग परिणया ते वेउल्लिय तेयाकम्मा सरीर प्पओग परिणया । जे अपज्जत्तग सम्मुच्छिम जलयर पंचिदियप्पओग परिणया, ते ओरालिय तेयाकम्मा सरीरप्पओग परिणमा, एवं जे पज्जतग सम्मुच्छिम जलयर पंचिंदियप्पओग परिणया, ते ओरालिय तेयाकम्म सरीरप्पओग परिणया । एवं चैव अपज़त्तग गब्भवक्कंतिय जलयर पांचदियप्पओग परिणयावि पज्जत्तग गब्भवक्कंतियावि एवं चेव नवरं सररिगाणि चत्तारि जहा बादरवाउकाइयाणं पज्जत्तगाणं । एवं जहा जलचरेसु चत्तारि आलावगा भणिया तहा चउप्पय उरपरिसप्प भुयपरिसप्प खहयरेसवि चत्तारि आलावगा भाणि - ऐसे ही अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत यावत् पर्याप्त चतुरेन्द्रिय प्रयोग परिणत वाले उदारिक, तेजस व कार्माण शरीर प्रयोग परिणत परंतु जो पर्याप्त बाद वायुकायिक एकेन्द्रिय प्रयोग परिणत हैं वे उदारिक, वैक्रेय, तेजस व कार्माण इन चार शरीर प्रयोग परिणत हैं, इतना विशेष जानना. सातों नरक के नारकी के पर्याप्त अपर्याप्त में वैक्रेय तेजस व कार्माण ये तीन शरीर कहना अप
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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