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शब्दार्थ
सत्र
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भावार्थ |
पंचांग विवाह पष्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
गीरती है त० तहां ते० : वे अ ० अचिंत पो० पुद्गल ओ० प्रकाशे जा० यावत् प० प्रभाकरे पूर्ववत् ॥७॥ १० ॥ जहा पढमसए कालासवेसियपुत्ते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे सेवं भंते भंतेति ॥ इति सत्तमसए दसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ७ ॥ १० ॥ सम्मत्तं च सत्तमस्यं ॥ ७ ॥ ÷
सब दुःखों से रहित हुवे वैसे यहां पर भी जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन तथ्य हैं यह सातवा ( शतक का दशवा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ७ ॥ १० ॥ सातवा शतक समाप्त हुवा ॥ ७ ॥
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सातवा शतक का दशवा उद्देशा
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