SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1018
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९८८ शब्दार्थ नि० नीकली हुइ दु० दूरगइ दू. दूरपडे देनजदीक गगइहुइ दे०नजदीक नि०पडे ज०जहां सा०वह नि० ___ अचित्तावि पोग्गला ओभासंति, उज्जोवेति, तवेंति, पभासंति ? हंता अत्थि ॥ कयरेणं भंते ! अचित्तावि पोग्गला ओभासंति जाव. पभासंति ?कालोदाई! कुद्धस्स अणगारस्स तेयलेस्सा निसड्ढासमाणी दूरगंता दूरं निवतइ, देसंगता देसं निवतइ, जहिं २ चणं सा निवतइ तहिं २ चणं ते अचित्तावि पोग्गला ओभासंति जाव पभासंति ॥ एएणं कालो दाई ! ते अचित्तावि पोग्गला ओभासंति जाव पभासंति॥तएणं से कालोदाई अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ बहूहिं चउत्थ छट्ठम जाव अप्पाणं भावेमाणे अचित्त पुद्गलों भी प्रकाश करे, उद्योत करे व तपे. अहो भगवन् ! कौनसे अचित्त पुद्गलों प्रकाश करे. यावत् तपे ? अहो कालोदायिन् ! क्रुद्ध अनगार से तेजो लेश्या नीकलकर दूर गई हुइ दर गीरती है। और पास में गई हुई पास गीरती है. वह तेजो लेश्या जहां गीरती है वहां ही उन के अचित्त पुद्गल, प्रकाश करते हैं यावत् तपते हैं. अहो कालोदायिन् ! इस तरह तेजो लेश्या के अचित्त पुद्गलों प्रकाश करते है. फीर कालोदायी श्रमण भगरन्त महावीर को वंदना नमस्कार कर चतुर्थ, षष्ट अष्टम भक्त ऐसे तप *करते हुवे संयम व तप से आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे. जैसे प्रथम शतक में कालासवेशित पुत्र अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी *प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी घालापसादजी * भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy