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शब्दार्थ
सूत्र
मात्रार्थ
43 अनुवादक- बालब्रह्मचारिमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अधिकाया को ने० बुझाता है ए इन मं० भगवन् दो० दोनों पु० पुरुषों में से क० कौनमा पु० पुरुष म० महाकर्म वाला म० महाक्रियावाला म० महाआश्रव वाला म० महावेदना वाला क० कौनसा पु० पुरुष तराएचैव जात्र अप्पत्रेयणतराएचेव जेवा से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेइ जेवा से पुरिसे अगणिकायं निव्वावेइ ? कालोदाई : तत्थणं जे से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेइ सेणं पुरिसे महाकम्मतराएचेत्र जाव महावेयणतराएचेत्र, तत्थणं जे से पुरिसे अगणिकार्य निव्वाइ, सेणे पुरिसे अप्पकम्मतराएचेय जात्र अप्पवेयणतराचेव ॥ सेकेणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ तत्थणं जे से पुरिसे जाव अप्पवेयणतराएचेत्र ? कालोदाई ! तत्थणं जे से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेइ सेणं पुरिसे बहुतरायं पुढविकार्य समारंभइ, बहुतरायं आउकार्य समारंभइ, अप्पतरायं तेउकायं समारंभइ, बहुतरायं होवे ? अहो कालोदायिन् ! जो पुरुष अधिकाया को प्रज्वलित करता है वह पुरुष महा कर्म वाला यावत् महा वेदना वाला होता है ओर जो अभि बुझाता है वह अल्प कर्म वाला यावत् अल्प वेदना वाला होता है. अहो भगवन् ! यह किस तरह है ? अहो कालोदायिन् ! जो पुरुष अग्नि प्रज्वलित करता है वह बहूत पृथ्वीकायिक, अपकायिक, अल्प तेजकायिक, बहुत वायुकायिक, बहुत वनस्पतिकायिक व स कायिक
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
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