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________________ शब्दार्थ | (भगवती ) सूत्र - विवाह पण्णत्ति विषामेश्रित भोजन भुं० भोगवे तक उस भो० भोजन का आ० आपात भ० भद्रक भ० होवे त० पीछे} | प. परिणमता दु० खराब रूपपने दु० दुर्गंधपने ज. जैसे म० महाआश्रव में जा० यावत् भु० वारंवार प. परिणम ए. ऐसे ही का० कालोदायी जी• जीव पा० प्राणातिपात से जा. यावत् मि० मिथ्यादर्शन कजंति ? कालोदाई ! से जहा नामए केइपुरिसे मणुण्ण थालीपाम सुद्धं अट्ठारस वंजणाउलं विसमिस्सं भोयणं भुंजेजा, तस्स भोयणस्स आवाए भद्दए तओपच्छा परिणममाणे २ दुरूवत्ताए दुग्गंधत्ताए जहा महस्सवए जाव भुजोर परिणमइ एवामेव कालोदाई ! जीवाणं पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले, तस्सणं आवाए भद्दए भवइ तओ पच्छा परिणममाणे २ दुरूवत्ताए जाव भुजो भुजो परिणमइएवं भुजो भुजो जैसे मनोज्ञ मनोहर पात्र में बनाया हुवा, अठारह प्रकार के व्यंजनादि युक्त परंतु विषमिश्रित पाक का कोई पुरुष भोजन करे तो भोजन करते समय उस पुरुष को वह पाक मधुर रसादि वाला होने से स्वादिष्ट लगता है. परंतु जब वह विष मिश्रित आहार शरीर में परिणमता है तब दुष्ट वर्णपने दुर्गंधपने परिणमता है, यावत् जैसे छठे शतक के तीसरे उद्देशे में कहा वैसे वारंवार परिणमता है ऐसे ही अहो कालोदायिन् !RY नीवों को प्राणातिपात यावत् मिथ्या दर्शनशल्य पहिले भाद्रिक होते है परंतु पीछे परिणमते हुए दुष्ट वर्णपने गंपने वारंवार परिणमते हैं. ऐसे ही अहो कालोदायी ! जीव वारंवार पाप कर्म के फल 28828 साता शतक का दशवा उद्देशा भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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