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शब्दार्थ
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एकदा जे. जहां स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर ते. तहां उ० आकर स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर को न० नमस्कार कर एक ऐसा व बोला अ है भं. भगवन् जी. जीव पा० पापकर्म पा० पापफल वि. विपाक सं० संयुक्त क. करे है. हां अ० है क. केसै भ० भगवन् जी. जीव पा० पापकर्म पा० पापफल वि० विपाक सं• संयुक्त का करे का० कालोदायी से० वह ज. जैसे के० कोई पु० पुरुष म. मनोज्ञ था० स्थाली पा. पाक सु० शुद्ध अ० अठारह वं. व्यंजनयुक्त वि०
चेइए होत्था, तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णयाकयाइं जाव समोसढे जाव पडिगया ॥ ११ ॥ तएणं से कालोदाई अणगारे अण्णया कयाई जेणेव समणे । भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छइत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ२ । त्ता एवं वयासी- अत्थिणं भंते ! जीवाणं पावा कम्मा पावफलीस्वाग संजुत्ता कजं
ति ? हंता अत्थि ॥ कहण्णं भंते ! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवाग संजुत्ता श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी एकदा पधार, पौरपदा वंदन को आई. धर्मोपदेश सुनकर पीछी गई ॥११॥ उस समय में कालोदायी अनगार श्री श्रपण भान हर सामी की पास आकर वंदना नमस्कार कर ऐसा कहने लगे कि अहो भगवन् ! क्या जीवों पाप का संयुक्त हैं ? हा कालो-१. दायिन् ! ऐसा ही है. अहो भगवन् ! जीव कैसे पापकर्म के फल विपाक से संयुक्त हैं? अहो कालोदायिन् !
* प्रकाशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावाथा