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शब्दार्थ समर्थ का० कालोदायिन् ए० इन पो० पुद्गलास्तिकाया में रू० रूपीकायामें अ० अजीव काया में च० समर्थ ।।
ole के० कोई आ० बैठने को जा० यावत् तु० निद्रालेने को ॥ ७ ॥ ए० इन पो० पुद्गलास्तिकाया में रू०
रूपीकाया में अ० अजीव काया में जी जीव पा० पाप क० कर्म पा० पापफल वि० विपाक सं० संयुक्त ककरे नो नहीं ए. यह अर्थ स०समर्थ का० कालोदायी जी जीवास्तिकाया अ० अरूपी काया में जी० जीव पा० पापकर्म पा० पापफल वि० विपाक सं० संयुक्त क० करे हं० हां क० करे ॥ ८ ॥ ए० हित्तएवा ? नो इणटे सम। कालोदाई ! एएसिणं पोग्गलत्थिकायांस रूवीकायांस अजीवकायसि चक्किया केइ आसइत्तएवा जाव तुयत्तिएवा ॥ ७ ॥ एएसिणं भंते ! पोग्गलत्थिकायंसि ख्वीकार्यसि अजीवकायंसि जीवाणं पावाणं कम्माणं पावफलविवाग संजुत्ता कजंति? णो इणटेसमटे । कालोदाइ ! एयंसिणं जीवत्थिकायसि अरूवीकार्यसि
जीवाणं पावा कम्मा पावफल विवाग संजुत्ता कजंति ? हंता कजंति ॥ ९ ॥ भावार्थ अहो कालोदायिन् ! यह अर्थ योग्य नहीं हैं अर्थात् अरूपी अजीव काय में बैठने को यावत् निद्रा लेने को
कोई समर्थ नहीं हैं. परंतु रूपी अजीव पुद्गलास्तिकाव में क्रियाओं करने को समर्थ हैं ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! इस रूपी अजीव पुद्गलास्तिकाय में क्या जीवों पापकर्म के फल विपाक से संयुक्त होते हैं ? अहो । कालोदायिन् ! यह अर्थ योग्य नहीं है. परंतु अरूपी जीवास्तिकायमें जीवों पापकर्म के फल विपाक से संयुक्त
० अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *