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शब्दार्थ महावीर को एक ऐसा व० बोला ए० इन मं० भगवन् ध० धर्मास्तिकाया में अ० अधर्मास्ति काया में
आ० आकाशास्तिकाया में अ० अरूपी अ० अजीव काया में च. समर्थ को० कोई आ. बैठने को चि० | Vखडा रहने को नि० विशेष बैठने को स. सोनेकोजायावत तु. निदालने को नो० नहीं इ०यह अर्थ स०१४
कालोदाई अटे समटे ? हंता अत्थि तं सच्चेणं एसमटे कालोदाई अहं पंच अस्थिकाए पण्णवेमि तंजहाधम्मत्थिकायं जाव पोग्गलत्थिकायं,सत्थणं अहं चत्तारि अस्थिकाए अजीवकाए अजीवत्ताए पण्णवेमि तहेवजाव एगचणं अहं पोग्गलत्थिकायं रूविकायं पण्णवेमि ॥ ६ ॥ तएणं से कालोदाई समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-एएसिणं भंते ! धम्मत्थिकायंसि अधम्मत्थिकायांस आगासत्थिकायंसि अरूबी अजीवकायं
सि चक्किया केइ आसइत्तएवा, चिट्ठित्तएवा, निसीइत्तएवा, सइत्तएवा, जाव तुयभावार्थ ऐसा संशय उत्पन्न हुवा. अहो कालोदायिन् : क्या यह अर्थ योग्य है ? हां भगवन् ! यह अर्थ योग्य
है है. अहो कालोदायिन् ! यह अर्थ सत्य है. मैं पंचास्तिकाय प्ररूपता हूं. उन में से चार अजीव व एक
जीव वैसे ही चार रूपी व एक अरूपी काय मरूपता हूं॥६॥ तव कालोदायी श्रमण भगवंत महावीर
स्वामी को बोले कि अहो भगवन् ! अरूपी अजीव काय जो धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, व आका1 शास्तिकाय हैं उन में कोई बैठने को, खड़े रहने को, सोने को व निद्रा लेने को क्या समर्थ है ?
ग विवाह पण्यत्ति ( भगवती ) सूत्र
488.748 सातवा शतक का दशवा उद्देशा 85-
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