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________________ शब्दार्थ | सूत्र भावार्थ 48 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी अस्तिभाव को अ० अस्ति भाव व० कहते हैं स० सर्व न० नास्तिभाव को न० नास्ति ति० ऐसा १० कहते हैं तं० उस को चे० ज्ञान से तु० तुम दे० देवानुप्रिय ए० यह अर्थ स० स्वयं प० विचारो सि० ऐसा करके || ७ || पूर्ववत् || ६ || त० तब से वह का० कालोदायी स० श्रमण भ० भगवन्त म भगवं महावीरे एवं जहा नियंठुद्देसए आव भत्तपाणं पडिदंसेइ २ त्ता, समणं भगव महावीरं वंदइ नमसइ नच्चासपणे जाव पज्जुवासेइ ॥ ५ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएर्ण समणे भगवं महावीरे महा कहा पडिवण्णे यावि होत्था, कालोदाईय तं देस हव्वमा गए कालोदाइत्ति समणे भगवं महावीरे कालोदाई एवं वयासी-से नूणं ते कालोदाई अण्ण या कयाई एगयओ सहियाणं समुवागयाणं तहेव जाव सेकहमेयं मण्णे एवं से नूणं { एसा कहा कि गुणशील उद्यान में श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी हैं वगैरह जैसा दूसरे शतक में निग्रंथ उद्देशे में वर्णन हैं वैसा यहां जानना, और श्री गौतम स्वामीने श्रमण भगवन्त महावीर को भक्तपान बताकर के वंदना नमस्कार यावत् पर्युपासना की ॥ ५ ॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी परिषदा में धर्मोपदेश करते हुवे प्रवर्तते थे. वहां कालोदाई भी आया. उस समय में श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी कालोदायी को एसा बोले कि अहो कालोदायी ! एकदा तुम सब मीलकर परस्पर ऐसा वार्तालाप करते थे कि श्रमण ज्ञात पुत्रने पंचास्तिकाय प्ररूपी है : यावत् यह कि तरह है * प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ९७८
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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