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*बोलाकर ए० ऐ ० बोले ए. ऐसे ख. निश्चय दे० देवानुपिय अ० अपनी इ० यह ककथा अप्रगट
हुइ नहीं गो. गौतम अ० नजदीक वी. जाते है त० उनको दे० देवानुप्रिय गो गौतम को ए. यह अर्थ पु० पुछने को त्ति ऐसा करके अ० अन्योन्य की अं० पास से ए. यह अर्थ प.मूनकर जे. जहां भ. भगवन्त गो० गौतम ते. तहां उ० आकर एक ऐसा व० बोले गो० गौतम त० तेरा ध० धर्माचार्य ध० धर्मोपदेशक स० श्रमण ना० ज्ञातपुत्र पं० पंचास्तिकाया प० प्ररूपते हैं ध० धर्मास्तिकाया जा०
एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमा कहाअविप्पकडा अयंचणं गोयमे अदूरसा तेणं वीईवयइ तसेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं गोयमं एयमटुं पुच्छित्तए त्तिकटुअण्णमण्णस्स अंतिए एयमटुंपार्डसुणंति २ जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता भगवं गोयम एवं वयासी एवं खलु गायमा! तव धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे नायपुत्ते पंचअत्थिकाए पण्णवइ ।
तंजहा- धम्मत्थिकायं जाव आगासत्थिकायं तंचव जाब रूविकायं, अजीवकायं रहेथे ॥ १४ ॥ उस समय में भगवन्त गौतम को अपनी तरफ आते हुए देख कर वे अन्यतीथिकोंने एक है एक को बोलाये, बोलाकर ऐसा कहा कि अहो देवानुप्रिय ! हम को यह वात पूर्ण प्रकट नहीं हुई है अर्थात में
इस का निर्णय बराबर नहीं हुआ है इस से यदि इस का निर्णय करना होने तो यह गौतम नजदीक में 12 आते हैं. उन को इप्सका अर्थ पुछना अपनको श्रेय है. ऐसा परस्पर कह कर वे अन्यतीर्थिक गौतम *
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी *
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी मालाप्रसादमी *
भावाथ