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शब्दार्थ
4843पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 8000
अ० अंतेवासी ई. इंद्रभूति अ० अनगार गो० गौतम गौत्रीय ए० ऐसे में जैसे वि० दूसरे सं० शतक में नि. निग्रंथ उद्देशा जा०. यावत् भि. भिक्षाचरीके लिये अ० फीरते अ. रथापर्याप्त भ० भक्तपान १० लेकर रा.राजगृह से जा यावत् अवरारहित अ० चपलतारहित व जावे ॥४ात. तब तेव्वे अ अन्यती र्थिक भ० भगवन्त गो गौतम को अ• नजदीक से वी० जाते पा० देखकर अ० अन्योन्य को स०
महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूई नाम अणगारे गोयम गोत्तेणं एवं जहा बिति ए सए नियंठुद्देसए जार भिक्खायरियाए अडमाणे अहापजत्तं भत्तपाणं पडिग्गहइ २ त्ता रायगिहाओ जाव अतुरिय मचवलं जाव चरियं सोहेमाणे २ तोसे अण्णउत्थियाणं अदूरसामंतेणं वीईवयइ ॥ ४ ॥ तएणं से अण्णउत्थिया भगवं गोयम अदूरसा.
मंतेणं वीईवयमाणं पासंति पासइत्ता, अण्णमण्णं सद्दावेति सदावेइत्ता एवं वयासी. वंदन करनेको आई धर्मोपदेश सनकर पछिी गइ ॥३॥ उप्त समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अंतेवासी गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति अनगार जैसे दूसरे शतक में निर्ग्रन्थ उद्देशे में कहा वैसे ही भगवंत की आज्ञा लेकर राजगृह नगर में पधारे. वहां भिक्षाचरी के लिये फीरते हुए यथापर्याप्त भक्तपान लेकर रामसह नगरसे शीघता व मंदता रहित र्यासमितिकी गवेषणा करतेहुवे उन अन्यतीर्थियोंकी पाससे चले जाई
88. 80सातवां शतकका दशवा उद्देशा8%8800
भावार्थ