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________________ शब्दार्थ | ९७४ 2 अनुवादक-वालब्रह्मचारी पनि श्री अमोलक ऋषिजी काय अ. अजीवकायप० प्ररूपते हैं. ध धर्मास्तिकाय आ. आकाशास्तिकाय पो० पुद्गला काय ए० एक स. श्रमण ना० ज्ञात पुत्र जी. जीवास्तिकाय को अ० अपि काया को जीव काय प० प्ररूपते हैं से. वह क. कैसे म० माने ॥२॥ ते० उस काल ते. उस समय में स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर जा. यावत् गु० गुणशील चैत्यमें स० पधारे जा. यावत् १०१ परिषदा प० पीछीगइ ॥ ३ ॥ ते. उस काल में स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर का जे. ज्येष्ठ कायं जीवकायं पण्णवेइ, तत्थणं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अरूविकाए पण्ण. वेइ, तंजहा-धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवत्थिकायं, एगचणं समणे नायपुत्ते पोग्गलत्थिकायं रूविकायं अजीवकायं षण्णवेइ से कहमेयंमन्ने एवं ॥ २ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव गुणसिलए चेइए समोसढे जाव परिसा पडिगया. ॥ ३ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ काशास्तिकाय व पुद्गलास्तिकाय ऐसी चार अस्तिकाय अजीवकाय कही है, और अरूपी जीवास्तिकाय को जीवकाय कही है. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय व जीवास्तिकाय ऐसी चार काय अरूपी और पुद्गलास्तिकाय रूपी कहो. यह अस्तिकाय कैसे मानी जावे ? ॥२॥ उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी राजगृही नगरी के गुणशील नामक उद्यान में पधारे. परिषदा प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायनी ज्वालामसादजी * mmar भावार्थ , ।
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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