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शब्दार्थ
अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी gi
ऐसे में भगवन् ॥ ७ ॥९॥ * * * *
ते. उस काल ते. उस समय में रा० राजगृह न० नगर हो० था व० वर्णनयुक्त गु० गुणशील. चें चैत्यमें व० वर्णनयुक्त जा० यावत् पृः पृथिवी शीलापट्टक त० उस गु० गुणशील चे० चैत्यकी अ ननदीक व० बहुत अ० अन्यतीर्थिक प० रहते हैं का० कालोदायी से शैलोदायी से० सेवालोदायी । उ० उदक ना' नामोदक क० नमुदक अ० अर्णपालक से शैलपालक सं० शंखपालक सु• मुहस्ती
भंत त्ति ॥ सत्तम सयस्स नवमो उद्देसो समत्तो॥ ७ ॥ ९॥ x x तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था वण्णओ,गुणसिलए चेइए वण्णओ, जाव पुढवि सिलापट्टओ, तस्सणं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे
अण्णउत्थिया परिवसंति,तंजहा कालोदाई, सेलोदाई,सेवालो दाई उदए,नामुदए,नमुदए, अंत करेगा. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यह सातवा शक्क का नववा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥१९॥ है नववे उद्देशे में परमत निराकरण का कहा. अब इस उद्देशे में भी इस का स्वरूप कहते हैं. उस काल ,
उस समय में राजगृह नामक नगर था. उस का वर्णन उववाइ सूत्र से जानना. उस के गुणशील नामक * उद्यान में पृथ्वीशीलापट्टक था. उस गुणशीलउद्यान की पास कालोदायी, शैलोदायी, सेवालोदायी, उदक,
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*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ