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________________ 3 mammaminawimmaamanawinner । अनुषादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी' ॥ २४ ॥ तएणं तस्स सुदंसणस्स बहुजणस्स अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म अयमेव अज्झथिए जाव समुप्पजित्था एवं खलु समणे जाव विहरंति, तंगच्छामिणं : समणेणं भगवया महावीरेणं बंदमि नमसामी एवं संपेहेइ २ त्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ. २ त्ता करयल जाक तिकटु, एवं वयासी-एवं खलु अम्मायाओ समणे जाव विहरति, संगच्छामिणं समजेणं भगवया महावीरेणं वंदामि जाव पज्जुवासामि ॥ २५ ॥ तएणं तं सुदसणसेटुिं अम्मा पियरो एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता ! अज्जुण मालागारे जाव घाएमाणे विहरति, तमिणं तुम्भे पुत्ता ! समणं भगवं है तो फिर धर्म कथा श्रवण करने का और प्रश्नोत्तर कर लाभ प्राप्त करने का फलकातो कहना ही क्या? ॥ २४ ॥ तब सुदर्शन श्रावकने बहुत लोगों पोस से उक्त कथन श्रवण किया अवधारा इस प्रकार विचार उत्पन्न हुवा–यों निश्चय श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी यावत् विचर रहे, हैं इसलिये जावू में भगवंत श्री महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार करूं, यो विचार किया, विचार करके जहां मातपित तहां आया, तहां आकर हाथ जोडकर यों कहने लगा-यों निश्चय अहो माता पिताओं ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारे हैं इसलिये जावू में श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार करके यावत् भक्तिकरूं ॥ २५ ॥ तब सुदर्शन शेट से मातापिता यों कहने लगे-यों निश्चय हे पुत्र अर्जुन प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहाय HIG CIT * । For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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