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________________ त्ता जेणेव बहिरिया उपद्वाणसाला जेणेव सिहासणे तेणेव उवागच्छइ . त्ता सीहासवरसि पुरस्थाभिमूहे निसीयइ र त्ता कांडुंबिय पुरिसे सहावेइ २. एवं वयासी- गच्छहणं तु देवाणुप्पिया ! वारवतिए नयरिए सिंघाडग जात्र घोसेमा एवं एवं खलु देवाणुप्पिय ! वारवत्तिणयरिए नत्रजोयण आव देवलोग भूयाए सुरग्नि दीवायण मूलाए विणासे भविस्सति तं जेणं देवाणुप्पिया ! इच्छति वारवतिय या ईसरे माडंविए कोडंबिय इन्भसेट्टींचा सेणावइवा देवित्रा कुमारोवा अरहतो. ..अरिनेमिस्स अंतिए मुंडे जाव पव्वइए, तत्तेणं कण्हे वासुदेवे विसज्जते ! पच्छा तुरस्स सभा थी तहाँ आये, आकर सिंहासन पर पूर्वाभिमुख बैठे, बैठकर कौटुम्बिक पुरुष को चोलामा, बोलाकर { यों कहने लगे- जावो तुम हे देवानुप्रिया ! द्वारका नगरी में जीवट चौवट यावत् उदघोषना करते हुवे ऐसा कहो-यों निश्चय हे देवानुप्रियाओं ! द्वारका नगरी नव योजन की चौडी यावत् प्रत्यक्ष देवलोक } जैसी अधिकुमार देवता दीपायन का जीव उस के योग्य से विनाश होवेगा, इस लिये जिस की इच्छा होवे (द्वारका नगरी के रहीस राजा ईश्वर माविक कुटुम्बिक ईभपति शेठ सेनापति राणीयों कुमरों आदि व अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ भगवान के पास मुण्डित हो दीक्षा ग्रहणकरो, उन को कृष्णवासुदेव आज्ञा देता है · 488+ अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र- 486+ Jain Education International For Personal & Private Use Only ००१०१+ पंचम वर्गका प्रथम अध्ययन 4++ ६९ www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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