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एवं खलु जंबु ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वारवतिए नयरीए जहा पढमेए जाव __ कण्हवासुदेवे अहे बच्चं जाव विहरति ॥ ४ ॥ तस्स कण्हवासुदेवस्स पउमवति
नामं देवी होत्था वण्णओ ॥ ५ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी जाव समोसढे जाब विहरति ॥ ७ ॥ कण्ह निग्गते जाव पज्जुवासति ॥ ७ ॥ तत्तणं सा पउमावति देवी इमीसेकहा लट्ठसमाणा हटे जहादेवइ जाव पज्जुवासंति ॥ ८ ॥ तएणं अरहा अरट्ठनेमी कण्ह वासुदेवस्स पउमावइए देवीए जाव धम्मकहाए
परिसा पडिगया ॥ ९ ॥ तएणं से कण्हं अरहा अरिट्ठनेमी वंदइ नमसइ, वंदित्ता वर्णन प्रथम अध्याय के जैसा जानना यावत् कृष्ण वासुदेव अधिपति पना करते विचरसे थे ॥ ४ ॥ उन
ग वासुदेव के पद्मावती नामकी रानी थी वर्णन योग्य ॥५॥ उस काल उस समय में अरिहंत अरिष्ट नेमनायी यावत् यावत् पधारे यावत् विचरने लगे ॥६॥ कृष्ण वासुदेव और परिषद वंदने आई यावत् सेवा भक्ति करने लगी।तब पद्मावती रानी को यह कथा प्राप्त होने से हृष्ट तुष्ट हुई जिसमकार देवकी रानी
वंदनेगई तैसे यह भी यावत् सेवा करने लगी॥८॥मईत अरिष्टनेयी कृष्णवासुदेव पद्मावती को यावत् धर्म कथा 10 सुनाई परिषदा पीछी गई ॥ ९ ॥ तब कृष्ण वासुदेव अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ भगवान को वंदना नमस्कार है ..
8488 अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र 480
पचम वर्गका प्रथम अध्ययन
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