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2. अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
॥ पञ्चम-वर्ग ॥ जइणं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं चउत्थरस वग्गस्त अयम? पण्णत्ते, पंचमस्सणं भंते वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्ते के अटे पण्णत्ते ? ॥१॥ एवं खलु जंबु ! समणेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणं पण्णत्ता तंजहा पउमावइ, गोरी, गंधारी, लक्खमणा, सुसीमाए, जंबूवती, सच्चभामा, रुप्पणी, मूल सिरी, मूलदत्तावि ॥ २ ॥ जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्सगं भंते ! अज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? ॥ ३ ॥ • यदि अहो भगवान ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामीजी मोक्ष पधारे उनोने चउथा वर्ग का उक्त अर्थ: कहा, अहो भगवान ! अंतग उदाशा के.पंचवे वर्ग का क्या अर्थ कहा है! ॥१॥ यों निश्चय हे जम्बु ! श्रमण यावत् मुक्ति पधारे उनोने पांचवे वर्ग के दश अध्यायन कह हैं,उन के नाम १ पद्मावतिरानीकारगोरीरानीका -३गंधारीरानी का, ४ लक्ष्मनारानी का, ५ सुसमारानी का, ६ जम्बुवतिरानी का, ७ सत्यभामारानी का, ८
रुक्मिनी रानीका (यह ८ कृष्णजीकी अग्रमहेपी)९ मूलश्रीरानीका,और१०मूलदत्तारानीका॥२॥ यदि अहो भगवान ! श्रमण यावत् मुक्ति पधारे उनोने पांचवे वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं, तो अहो भगवान ! प्रथम अध्याय का क्या अर्थ कहा है ?॥३॥ हे जम्ब ! उस काल उस समय में द्वारका नगरी, इस का
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालामसादजी
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