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सूत्र
अर्थ
अष्टांग-अंतगड दशांग सूत्र
॥ ७६ ॥ तत्तेणं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हवासुदेवं एवं वयासी - साहितेणं कण्हा ! गय• सुकुमालेणं अणगारण अप्पणी अट्ठो ॥७७॥ तएण से कण्हवासुदेवे अरहा अरिटुनेमि एवं वयासी कहहं भंते ! गयसुकुमालेणं अणगारणं साहित्त अप्पणा अड्डो ? ॥७८॥ से अरहा अमी कण्हवासुदेवं एवं बयासी - एह खलु कण्हा ! गयसुकुमालणं अणगारेण ममकलपुवावरण्ह कालसमयसि बंदति नमसंति वदित्ता नमसिता एवं वयासी- इच्छामि जाव उवसंपजित्ताणं विहरति । ततणं ते गयसुकुमालं अणगारे एगपुरिसें पासति २ ता जाव सिद्धे ॥ ७९ ॥ त एवं खलु कण्हा ! गयसुकुमाल
नमस्कार करूं ॥ ७३ ॥ तब अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ कृष्ण वासुदेव से यो बोले- कृष्ण ! गजंसुकुमाल अनगारने अपना अर्थ - कार्य पूर्ण किया || ७७ || तब कृष्ण वासुदेव अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ से यो बोले- अहो भगवन् ! किस प्रकार गजसुकुमाल अनगारने अपना अर्थ पूर्ण किया ? ॥ ७८ ॥ तब अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ कृष्ण वासुदेव से ऐसा बोले- यों निश्चय, हे कृष्ण ! गजमुकुमाल अनगार) कल दोपहर के वक्त मुझे वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार कर ऐसा बोले- अहो भगवन् ! मैं चहाता हूं यावत् एक दिन की भिक्षुक की प्रतिमा अङ्गीकार कर विचरना यावत् विचरने लगे. तब उन गजसुकुमाल, अबगार को एक पुरुषने देखा देखकर यावत् साहाय दिया जिस से वे सिद्ध बुद्ध पारंगत
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**तृतीय वर्गका अष्टम अध्ययन
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