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________________ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी g+ गतेचेव एगंइंटि गिण्हइ. २ त्ता बहिया र पहाओ अंतोगिहं अणुप्पविस्सति ।।७४॥ तएणं से कण्ह वासुदेवेणं एगाइंटि गाहितेया समाणाते अणेगाहिपुरिसेहिं तहिं रासि बहियारथा होता पहातो अंतोघरंसि अणुप्पविसिते ॥ ७५ ॥ तत्तेणं से कण्ह वा दवे वारवतिणयरीए मज्झमज्झणं णिगच्छइ, जेणेव अरहा अरिटुनमी तेणेव उवागच्छइ २ जाव वंदिती नमसति, वंदिता नमंसिता गयसुकमाल अणगारं अप्पासमःणे अरहं अरिट्ठनेमी वंदिता नमंसिता एवं वयासी कहणं भंते ! ममसहोदरे कणीया साभाय गयसकमालेअणगारे, जेणं अहंवदामि नमसामि ? पर रहे हुये ही, एक इंट ग्रहण की, ग्रहण कर वाहिर राज्यपंथ से लकर उसके घर में स्थापन की ॥४॥ तब उन कृष्ण वासुदेवने एकइंट ग्रहण कियेबाद उनके पीछे अनेक गणपुरुप रहे हुवे थे उनोंने एकेक ईट. ग्रहणकर वाहिर राज्यपंथमे उठाकर अन्दरके धरमें स्थापनकी।। १५||तब कृष्णवासदेव द्वारका नगरी के मध्य में होकर जहां अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ थे तहां आये, आकर. यावत् वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार का गजसुकुमाल अनगार को नहीं देखते हुवे, अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ को बंदना नमस्कार कर यों कहने , लगे-अहो भगवन् ! मेरा सहोदर छोटा भाइ गजसकमाल अगार, कहां है, ? जिन को मैं वंदना पकाशक-राजावहादर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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