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22 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
वारस्सय अहोरत्ता ॥ ३ ॥ चउण्हं पंचवरिसा, नवमासा अट्ठारस्स दिवसा सेसं तहेव ॥ नववासा परियातो जाव सिद्धा!। बीय अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ८ ॥ २ ॥ एवं महाकालीबी, णवरं-खुडाग सीहनि कीलियं तबोकम्म उवसंपजित्ताणं विहरंति, तंजहा-चउत्थं करेइ २त्ता सव्वकामगुण पारइ २ त्ता, छटुंकरइ करेइ २ त्ता, सब्बकामगुण पारेइ २ त्ता, चउत्थं करेति २ त्ता, सव्वकामगुण, अट्ठम करेइ २, सव्वकामगुण ०, छटुंकरेइ २, सव्वकाम०, दसमंकरइ २, सब्बकाम ,अट्ठमंकरेइ २ सन्चकाम०, दुवालसमं करेइ, सव्वकामगु०, दसमंकरेइ २, सव्वकाम, चउपसमं ।
करेइ २, सव्वकामगु०, दुवालसमं करेइ २, सन्दकाम०, सोलस्समं करेइ, एक वर्ष पांच महीना बारे अहोरात्र लगी और चारों परीपाटी में पांच वर्ष नव पहीने अठारे दिन लगे. शेष अधिकार तैसा ही जानना. नव महीने दीक्षा पाल यावत् सिद्ध हुई ॥ इति अष्टम वर्ग का द्वितीय अध्ययन समाप्त ॥ ८॥२॥ऐसे ही महाकाली रानी का भी सब अधिकार जानना जिसमें इ विशेष-लघु सिंहकी क्रीडा का तप अंगीकार कर विचरने लगी-तद्यथा--चौथ भक्त किया, करके, सर्व प्रकार के रसोपभोगकर पारना किया, ऐसे ही छठ ५क्त कर पारना किया, चौथ भक्तका पारना किया, अष्टम भक्तका पारना किया, छठभक्तका पारना किया, दांगकर पारनाकिया,
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
अर्थ
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