SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - तत्थणं सेणियरस रणो भजा, कोणियस्सरणो चुल्लमाउया, सुकालीणामं देवीहोस्था, जहा काली तहा सुकाली निक्खत्ता जाव बहुहि चउत्थं जाव भावमाणे विहरइ 1. ॥१॥ तत्तेणं सुकाली अजा अन्नयाकयाइ तेणेव अजचंदणाए अजा जाव इच्छा मिणं अज्जा तुब्भेहि अब्भणुणाए समाणी कणगावली तयोकम उवसंपजित्ताणं विह.. रित्ताए! एवं जहा रयणावली तहा कणगवाली, नवरं तीसुटाणेसु अट्टमाइ करेति, . जहिय रयणावली, छट्ठाइ ॥ २ ॥ एकाएकाएपरिवाडिए संवच्छरे पंचमासा अर्थ पूर्णभद्र यक्ष का चैत्य था, कोणिक नाम का राजा था, तहां श्रेणिक राजा की भारिया, कोणिफ राजा की छोटी माता, मुकाली नाम की राणी थी, जिस प्रकार काली राणीने दीक्षा ली उस ही प्रकार सुकाली राणीने भी दीक्षा ली यावत् बहुत प्रकार चइत्य भक्त छठ भक्त अष्टम भक्त आदि तप करती हुई विचरने लगी॥२॥ है तब सुकाली आणिका अन्यदा किसी वक्त जहाँ चंदनवाला आर्जिका थी तहां आई, वंदना नमस्कार कर कहने लगी-मैं चहाती हूं आपकी आज्ञा हो तो कनकावली तप कर्म अंगीकार कर विचरूं ? यों जिस है। 198 प्रकार रत्नावली तप का कथन कहा तैसा ही सब कनकावली तप का भी कहना, जिस में विशेष इतना 0 उम तप के तीन स्थान में ले किये थे, प्रथम स्थान में आठदुनरे स्थान में तप के मध्य में) चौंतीस, तीसरे स्थान 17 में आठ, और इस तप में तीनों स्थान में इतने ही तेले किये, और सब तैसे ही जानना. इन तप की एक परीपाटी में AnmnmannamAnamianmmmmmmmmmmm अष्टमांग-अंतगह देशांग सत्र 839 अष्टम-वर्गका द्वितीय अध्ययन 480%80 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy