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कापनी+ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अपोलक
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तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसीए नयरीए काम महावणे चेहरातस्थणं वाणारसीए अलक्खनामं सयाहोत्थाn ॥तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जावः समोसरिए विहरति ॥ परिसाणिगाया ॥ २ ॥ तत्तेणं अलक्खराया इमिसे कहा लट्ठ हट्ठ जहा कुणिए जाव पज्जुवासति ॥ ३ ॥ धम्म कहा ॥४॥ तचेगं से अलक्खराया समणस्स भगवओ महावीरस्स जहा उदाइतो तहा निक्खते, नवरं जेठे पुस्तं रयं अभिसंचति ॥ ५ ॥ एकारस्स अंगाइ अहिजइ, बहुवासापरियाओ पाउणित्ता, विउलेसिई ॥ सोलरसमं अज्झयणं सम्मत्तं॥६॥१६॥ इति छटो वग्गो सम्म॥६॥ सोलहवा मध्ययन-उस काल उस समय में बनारसी नामक नगरी थी. कामवन नामक बाग था, वहा बनारसी नगरी में अलख नाय का राना राज्य करता था ॥१॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारे, परिषदा आइ ॥२॥ तब उप अलब राजा को यह खबर लगने से उववाद सूत्र में की कोणिक राजा की तरह सजाइ मजकर दर्शनार्थ आया यावत् भक्ति करने लगा ॥३॥ मगवंतने धर्मकथा मुनाइ ॥४॥सर मलख रामा भगवती मूत्र में कहे. उदायन राजा की तरह अमण भगवंत श्री महावीर स्वामी के पास दीक्षा धारन की, जिसमें इतना विशेष उदायनने अपने मानज (पहिन के पुत्र) को राज्य दिया था, और इनने अपने बड़े पुत्र को राज्य दिया ॥५॥ दीक्षा धारन बरग्यारे अंग पवे, पडत वर्ष साधुपना पाला यावत् विपुलगिरी पर्वतपर संथारा कर मुक्ति मये ॥३॥ तिमोरम अध्ययन संपूर्ण ॥ ६॥ इति षष्टम वर्ग ममाप्त ॥ ६॥
.प्रकाशक-राजाबहादुर मला मुखालसहायजी बालापसादनी.
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