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________________ 4 488+ अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र ततेणं मे अज्जणय अणगारे तेणं उरालेणं विउलेणं पयत्तणं परिगाहिएणं महाणभागेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणे बहु पहिपुण्णे छमासेसामन्न परियगं पाउणित्ता अद्वमासियाए संलेहणाए अप्पाणं झुति २ तीसं भत्ताइं अणसणाए छिद्देत्ति २ जस्सट्राए किरंति तंमद्रं अराहेति जाव सिद्धे ॥ ५० ॥ छटस्स वग्गरस सत्तिय अज्झयणा सम्मत्तं ॥ ६ ॥३॥ . + तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहेणगरे गुणसिले चेहए ॥ तत्थणं सेणियराया, कासवनाम गाहावई, परिवसई, जहा मकाति, सोलस्सवास परियाओ विउले सिद्धे ।। देश में विचरने लगे ॥ ४२ ॥ तब अर्जुन अनमार उस उदार विपुल-विस्तीर्ण प्रयत्न से ग्रहण किया हुवा तप करके, महानुभाग्य तप करके अपनी आत्मा को भावते प्रतिपूर्ण छ महीने दीक्षा पाली, आधा महीना पत्रह दिन का ] संथारा किया, सलेषना से आत्मा की झोसना कर तीस भक्त अनशन का छेदन में किया. छदन कर जिम लिये उठे थे-सावधान हुवे थे वह अर्थ सिद्ध हुवा यावत् सिद्ध बुद्ध हो सर्व दुःख का क्षय किया ॥५०॥ इति छठा वर्ग का तीसरा अध्याय संपूर्ण ॥६॥३॥ x ०४ उस काल उस समय में राजगढी नगरी, गुनासला चैत्य, तहां श्रेणिक राजा ॥ कासव नामक Yगाथापति रहता था, जैसा मकाइ गाथापति का कथन कहा तैसा सब इनका भी जानना. सोले वर्ष संयम 88 षष्टम-वर्गका चतुर्थ अध्ययन 49882 42488 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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