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________________ दंडे महया भडचडगरेण जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए।।४ १॥तएणं से अभग्गसेण चोरसेणावई तेर्सि चोपुरिसाणं अंतिए एयमटुं सोचाणिसम्म पंचचोरसयाइं सहावेइ २त्ता एवं वयासी-एयं खलु देवाणुप्पिया! पुरिमताले णयरे महब्बले जाव तेणेव पहारत्थ गमणाए आगए ॥४२॥ तएणं से अभग्गसेणे ताइपंचचोरसयाइं एवं वयासी-तं सेयं खल देवाणुप्पिया! अम्ह तं दंडं सालाडवि चोरपल्लिं असंपत्तं अंतराचेव पडिसेहित्तए॥४३॥ वएणं ताइ पंचचोरसयाई अभग्गसेजस्स तहत्ति जात्र पडिसुणे २ ॥४४॥ तएणं से हुवा यहां सालाटवी चोर पल्ली में आरहा है ॥ ४१ ॥ तब फिर वह अभग्गसेन चोर मेनापति उम हेरू चोर के पास उक्त अर्थ श्रवण करके हृदय में अबधार कर पांच सो चोरोंको बोलाये, वोलाकर यों कहने लगा-चों निश्चय हे देवानुप्रिय ! पुरिमताल नगर का महा बलराजाका दंड मेनापति कटक सेना) लेकर यहां अपनी चोर पल्ली लूटने आरहा है,ऐमा हेरूका कहना है ॥४२॥ फिर अभग्गसेन चोर उन पांचसो चारों को यों कहने लगा-हे देवानुप्रिय ! उन सेनापति का कटक सालाटवी चौर पल्ली को आ नहीं पहुंचे तहां तक सन्मुख जाकर उस को बीच रास्ते में से मारकर पीछा फिराना अपन को उचित है ॥ ४ 15 उन पांच सो चोरोंने सेनापति का वचन तहति प्रमाण किया-मान्य किया ॥ ४४ ॥ तब फिर वह अग्ग एकादशमांग त्रिपाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध दुःखावपाकका-तीसरा अध्ययन-अभग्गसन चार का 1 8 Horos Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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