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+3 अनुवादक-बालब्रह्मगरी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
महव्वलसरण्णो एयमटुं विष्णवित्तए ॥ ३६ ॥ तएणं जणवया पुरिसा एययटुं अण्ण मण्ण पडिसुणेइ २ ता महत्थं महग्धं महरिहं रायरिहं पाहुडं गिण्हइ २ ता जेणेव पुरिमताले णयरे तेणेव उवागच्छइ २त्ता जेणेव महब्बलेराया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता महाव्वलरण्णो महत्थं जाव पाहुडं उवणेई, करयल अंजलीकटु महब्बलंरायं एवं वयासी-तुम्भं बाहुछाया परिग्गहिया निब्भया णिरुविग्गा सुहं सुहेणं परिवसित्तए. सालाडवी चोरपल्लीए अभग्गसेणे चोरसेणावइ अम्हं बहुहिं गामघायहिय जाव णिडणे
करेमाणे विहरह, तं इच्छामिणं सामी ! तुब्भं बाहुछाया परिग्गहिया णिब्भया णिरुसर्व बृतान्त निवेदन करें॥३६॥तब फिर जनपद देश के लोगों परस्पर उक्त कथन सुनकर-मान्यकर महाप्रयोजनवाला बहुमूल्य राज्ययोग भेटना निजराना ग्रहनकर,जहां पुरिमताल नगरथा तहां आये, आकर जहां महावल राजा था.
आये, वहमहा प्रयोजन रूप महामूल्य भेटना (निजराना) अर्पन कर हाथ जोडकर मस्तकावर्तन कर यों कहने लगे-हम सब आपकी वाहकी छहिमें आपके वाहके आधारसे भय रहित हुने उद्वेग रहित हुवे रहते हैं. परंतु सालाटवी चोरपल्ली में अभग्गसेन चोरसेनापति हमारे बहुत से ग्रामोकी घातकरताहुवा यावत् निर्धन करता हुवा विचरता है,इस लिये चहाते हैं अहो स्वामी ! आपकी बांहकी छांह में इतना भी भय रहित द्वेष रहित सुख मुख से काल
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्या प्रलदजासी *
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