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सूत्र
अर्थ
सि गब्भगयांस समाणंसि इमेयारूवे दोहले पाउब्भूए, तम्हाणं होउंअम्हं दारए अभग्गसेण णामेणं ॥३०॥ तएणं से अभग्गण कुमारे पंचधाई जाव परिधावई ॥ ३१ ॥ तणं से अभग्गसेो णामं कुमार उमुक्कवाल भावेयावि होत्या, अट्ठदारियाओ जाव अदाओ उपि भुजइ ॥ ३२ ॥ तएण से विजए चोर सेणावइ अण्णयाकयाइ कालधम्मुणासंजुत्ते ॥ ३३ ॥ तरणं से अभग्ग सेणकुमारे पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे विजयरस चोरसेणावइस्स महयाइड्डी सक्कारसमुदएणं णीहरणं ज्ञाती के सन्मुख यों कहने लगा. जिस वक्त हमारा यह बालक गर्भावस्था में था तब इस प्रकार दोहला {उत्पन्न हुवा था इसलिये होवो हमारे इस पुत्र का नाम अभग्गसेन कुमार || ३० ॥ तब फिर वह अभग्गसेन कुमार पांच धाइयों के परिवार से वृद्धि पाने लगा, पर्वतकी आड में चम्पक लता की तरह वृद्धि पाने | लगा ॥ ३१ ॥ तब फिर वह अभग्गसेन कुमार बाल्यावस्था से मुक्त हुवा यौवन अवस्थाको प्राप्त हुवा, तब | उसका आठ कन्या के साथ पानी ग्रहण कराया यावत् आठ२दाति दायचयें दीं, सारश्वस्तुको ग्रहणकर प्रसाद के ऊपर सुख भोगवता सुख से रहने लगा || ३२ ॥ तब वह विजय चोर सेनापति एकदा प्रस्तावे काल धर्मको मांस हुआ-परगया. ॥ ३३ ॥ तत्र फिर बद अभग्गसेन कुमार पांचसो चोर के साथ परिवरां हुवा रूदन करता
++ अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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* प्रकाशक - राज बहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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