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________________ गोयमा ! तेणंकालेणं तेणं समर इहेव जयदीवेदीये भारहेवासे पुरिमताले माम जयर होत्था रिडस्थिमिए ।। १४ ॥ तत्थणं पुरिमताले उदयेणामं राया होत्था, महया ॥ १५ ॥ तत्थणं पुरिमनाले निन्न रणाम अंड यागिर होत्या, अड्डे जाव अपरिभूए, अहम्मिए जाच दुप्पडिपाणदे। १६ ॥ तस्मणं णिाियरस अंडय वाणियरस बहवे पुरिमा दिण्णभनि भातोडगा नलि कदालियाओय पत्थियाए पडिए गेहइ रिमतालस्स णयरस्स परिपरतेमु बहुकाकडएय, घूतिअंडएय, पारेवइअडएय, टेहि ३१.४ एकादशभाम-विषाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 4. दुःखविपाकका तीसरा अध्ययन-अमगामन चोर का विचरता है॥१३॥ तर भारत काने लग यों निश्चय हे गौतप: उस काल उस समय में इस ही जंबूद्वीप के भरत क्षेत्रमें पुरियताल नाम का नगर ऋद्धि स्वृद्धिक र युक्त था ॥ १४॥ उस पुरिमताल नगर में उदायन नाम का रागा राजपकरता था, महाहियः पर्वत समान ।। १५ ।। उ पुरिपताल नगर में निन्दव नाम का मंदिरावा यान: या यात्रत् दूसरे का खराश कर मानन्द मनने वाला था ॥ १६ करके या पहल नोकर ये उनको वह खान पान मजूरी के दाम देता था, वे नोहा पुरुन नदेव वक्तो वक्त भुपीख दनकी कुदालियों बांस के टोपल छोटी टोपलीयों को ग्रहणकर चारों तरफ दियः पिदिशा बहुमसे कान के अण्ड, घूर के अण्ड,परदे-कबूतर के अण्डे, टोही के Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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