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अनुवादक-शलब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक अपनी
मारियाए अत्तर अभग्गसेणं णाम दारए होत्था अहीणं ॥ ९॥ तेणंकालेणं तेणंसमएण समगे भगवं महावीरे परिमतालणाम जयरे जेणेव अमोहदंसी उजाणे तणव समोमढे, परिसा राया जिग्गओ, धम्मोकहिओ परिसा राया पडिगओ!॥ १०॥ कालगं तणंसमएणं समस्त भगवओ महावीरस्म जेद्र अंतवासी गायम जाब रायमग्गं समोरगाढे. तत्थणं वहवे हत्थी पासइ बहवे असि परिसे सन्नद्धबद्ध कधए तेसिणं पूरिसाणं मझगयं एग परिसं पासइ अघउडय जय उपचासेमाणा ॥ ११ ॥
तएणं तं पुरिसं राया पुरिला पढनसि चच्चरसि णितियाविति २ चा अट्टचुल्लपि उए अभगमेन नाम का चाला था यह भी सन्द्रिय पूर्ण था ॥१॥ उस काल उप मराय में श्रमण भगत महावीर स्वामी पुरनिगल नगर का जहां अमोघदर्श उया था उसमें पधारे, परिषदा दर्शर्थ ... धर्मकथा सुनाई परिषदा राजा पीछा गया ॥ १० ॥ उस काल उ र ममय में धरण भगवंत महावीर स्वामी के घडे शिष्य गौतम सापी भगरम की आज्ञले पुरिनाल नगर गोरी गये, तहां राज्यपन्य में बहुन इस्ति सनद्धपद्ध-पाखर युक्त यावत् दुसरे अध्ययन में कहें मुजब देखा ॥ ११ ॥ तहां सब के मध्य में एक पुरुष बन्धन से बन्धा हुवा उसे राज्य पुरुष प्रथम चौवट के मध्य में बैठाकर उस के सन्मुख पाठ पीसारये काका (बाप के छोटे भाई) को मारते हैं, कस-चाबुक के प्रहार कर मारते हैं, वे उसे मार
प्रकाशक-राजीबहादुर लाला मुखदेवसमापजी ज्वालाप्रसाद जी *
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