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गयरस्म उत्तर पुरथिमिल जणवयं बहुहि गामवाएहिय. पायरघाएदिय, गामणहिय; वंदिग्गहणेहिय, पंथकोहहिय, खत्तखणणेहिय, बलिमाणे २, विदरमाणे २,सगाणे २ सालेमाणे २, गित्था मिजे शिकणे करेसाण विहरइ, महबलस्परप्णा अमि. क्खवणं २ कप्पाइं गिण्हइ ।। ७ ॥ तत्वयं विजयस धोरणावहस्स खंधसिरिणाम
भारिया होत्था, अहीणं ॥ ८ ॥ तस्थणं विजय चोर सेणावइस्त पुत्ते खंधतिरीए रास्ता लूट करता हुघा, साथ बार-बहुन लोगों मिलकर गाये उसको लूटना हुचा सागर दे चोरी करता। हुगा, इत्यादि अनेक उपद्रय कर लोगों को दुःख से पीड़ित करता हुया, लोगों का धन का विम कर-3 ता हुवा, लोगों की पारी वस्तु का हरण करता हुवा, लोगों को धर्म कर्म रहित करता हुषा, सर्जना ताडना करता, थय उत्पन करता, कम चायूकादि का प्रहार करता-मारता, लोगों को स्थान भृष्ट करता-स्थान छोडता अर्थान् ग्राम को उजाड करता हुदा, लोगों को निर्थन करता हुआ, गवादि पशू रहित करता हुवा,
जात्यादि पान्य रहित करता हुवा, इस प्रकार दःख देना हु विचरता था. और पहायल राजा से भी |ac द्रव्य का भाग लेता था:॥ तहां विनय चोर सनापति के खंघश्री नाम की भार्या थी, वह प्रातिपूर्ण इन्द्रिय
की धारक यावत् सुरुषा धी। ८॥ तहां विजय चोर मेनापति का पुत्र खंधश्री भार्या का आत्मज
पकादशमांग-विपाक सत्रका प्रथम श्रुतस्कन्ध-40182
चविषाक का तीसरा अध्ययन-अभग्गनेन चोर का
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