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42 अनुवादक -पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
परिणमइ, तं पियसे पूयंच सोणियंच तं आहारेइ ॥ ६१ ॥ तएणं सा मियादेवी अण्णयाकथाइ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारयं पयाया-जाइअंधे जाव आगिति. मित्ते ॥६२॥तएणं सा मियादेवी तं दारयं हंडं अंधारूवं पासइ २त्ताभीया४ अम्माधाइ सहावेइ २त्ता एवं वयासी-गच्छहणं देवाणुप्पिए!तुमं एयंदारगं एगंत उक्करुडिया उज्झाडि। ६३ ॥ तएणं सा अम्माधाइ मियादेवीए तहति, एयमटुं पडि पुणेइ २त्ता जेणेव विजएखत्तिए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता करयल परिग्गहियं जाव एवं वयासी
एवं खलु सामी ! मियादेवी णवण्हं जाव आगितिमित्ते, तएणं सामियादेवी त हुंडं परिण में,क्षुधा क प्रबलतामे उस पीप रक्तको भी वह आहार कर जाने लगा॥६१॥तब फिर मृगारती रानी अन्यदा नव महोने प्रतिपूर्ण होने से कुमार का जन्मदिया, बालक जाति अन्ध अङ्गोपाङ्ग रहित यावत् उस के इन्द्रियों के आकार मात्र देखाते थे ॥ ६२ ।। तब वह मगावती रानी उस मॉम की लाथ ममान इन्द्रिय रहित उस बालक को देखकर डरगइ, त्रास पाइ, भय भीत हुइ, उस वक्त अपनी धायमाता को बोलाकर यों कहने लगी-हे देवानुप्रिया! तुम जावो इस बालक को एकान्त उकरडे पर डाल देवो ॥३॥ तब वह धायमाता मृगावती देवी का उक्त कथन प्रमाणकर जहां विजय क्षत्री राजा थे तहां आई, आकर दोनों हाथ जोड कर मस्तकपर चढ़ाकर थावत् यों कहने लगी हे स्वामी! मगावती रानी नव महीने प्रनिर्ण
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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