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________________ रत्र एकादशमांग-विपाकपुत्र का प्रथम श्रुतस्कन्धg+ संता तता परितता अकामिया अवसयंत्रा तंगभं देहं दुहेणं परिवसई ॥५९॥ तरसणे दारगरस गन्भइगयरस चेव अट्ठनालीओ अभिसर पवाहाओ,अट्ठनालीओ बाहिरप्पवहा. ओ, अट्ठपूयप्पवहाओ, अट्ठसोणियप्पवहाओ, दुवे २कण्यंतरेसु दुवे २अक्खिइरसु, दुवे २ नकंतरेसु दुवे २धमाणिअंतरेसु अभिक्खणं २ पूर्यच सोणिपंच परस्सवमाणीओ२ चिटुंति ॥ ६ ॥ तएणं तस्स दारगस्स गब्भगयरस चेव अग्गिएणामं वाही पाउब्भूए, जेणं सेदारए आहारेई सेणं खिप्पामेवे विद्वंसंसैमागच्छई २ त्ता, पूयत्ताएंय, सोणियत्ताएय अभिलाषा रहित विना मन. परवशपने उप्त गर्भ को दुःख से निर्वाहने लगी ॥ ५९ ॥ सब उस बालक को उस गर्व अवस्था में से ही आठ नाडीयों के शिरासे अभवन्तर [ शरीर के अन्दर ] ऋधीर बहने लगा, आठ नाडीकी शिरा से शरीर के बाहिर अधीर बहने लगा,यो १६, आठ नाडी पीप (राध)की अन्दर बहने लगी और आठ नाडी पीप की वाहिर बहने लगी, यो ३२, दो दोनाडी दोनो कान में, दो दो नाडी दोनों के आंखों में, दोदो नाडी मा यो १.६,सब४८नाडायों वारम्बार पीप रक्त से पूरित हो वहने लगी॥३०॥तब उसमें %ालकको गर्म अवस्था में से ही अभिवास ( भस्माग्नि ) नाम का रोग उत्पन्न हुवा उस रोगकर वह बालक जिस वस्तु का आहार करै वह आहार तत्काल विद्धस हो जावे, विद्धशपाकर, पीप (राध ) पने रक्तपने दुख विपाक का-पहिला अध्ययन-मृगापुत्र का418 lain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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