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एकादशमांग-विपाक सूत्र का द्वितीय श्रुतस्कन्ध
बंधे इहं उप्पण्णे सेसं सुबास्स चिंता जाव पवज्जा, कप्पंतरे तओ जाव सबसिडे, तओ महाविदेहे जाव सिज्झिहिंति ॥ दसमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥१०॥ * एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ॥मेवं भंते २॥ णमोसयदेवयाए विवागसुयस्स दोसुयक्खंधा दुहविवाग दसअ. ज्झयणा, सुहविवाग दसअज्झयणा, एक्कारसगा दसमु चेव दिवसेसु उद्दिसिजंति, एवं
सुहविवागोवि सेसंजहा आयारस्स ॥ इति विवागसुयं एकारसमं अगं सम्मत्तो॥११॥ मनुष्य, तीसरा देवलोक, मनुष्य, पांचवा देवलो, मनुष्य, सातबा देवलोक, मनुष्य, नवधा देवलोक, मनुष्य, ग्यारवा देवलोक मनुष्य और सर्वर्थ सिद्ध में उत्पन्न हो वहां से महामिदेह क्षेत्र में जन्मले दीक्षाले कर्म | क्षयकर सिद्ध होगा यावत् सर्व दुःख का अन्त करेगा ॥ यों निश्चय हे जंबू ! श्रमण भगवंत यावत् मुक्ति गये जिनोने दशवा अध्ययन का यह अर्थ कहा, तैमा ही मेंने तेरे से कहा. तहति वचन अहो भगवान आपने कहा तैसा ही है ।। इति सुख विपाक का दशवा अध्ययन समाप्तम् ॥ १० ॥ + उपसंहार-नमस्कार होवो श्रुतदेवको,विपाक मूत्रके दोश्रुतस्कन्ध दुःख विपाकके दश अध्ययन और सुख विपाक-24 के भी दश मध्ययन. इग्यारवे अंग के२० अध्ययन प्रथयके दश अध्ययन भी दश दिन में वांचने तैसेही दूसरे केदश अध्ययन भी दश दिन में बांचन, और आचारंग के जैसे जानना ॥ इति मुख विपाक सूत्र समाप्तम् ॥ ११ ॥
40 सुख विपाकका-१०-११अध्ययन सुबाहुकुमारका
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