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________________ जियसत्तुराया, धम्मविरति अणगारे पडिलभिए जाक सिद्धे ॥णवमंअज्भयणं सम्मत्तं ॥९॥ जहणं दसमस्स उक्खेवओ ॥ एवं खलु जंबु ! तेणं कालणं तेणं समएणं साएयं णामं गयरे होत्था, उत्तरकुरु उजाणे, पासामियो जक्खो, मित्तणंदीराया, सिरिकतादेवी, वरदत्तकुमारे, वीरसेणापामोक्खाणं पंचसयादेवी, तित्यगरागमणं, सावगधम्मं ॥ पुवभवो-सयादुवारे णयरे, विमलवाहणेराया, धम्मरूइ अणगारे पधिलाभिए, माणुस्साउ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक. ऋषिजी + • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी दत्तराजा रत्तवती रानी महाचन्द्र कुमार युवराजा, श्रीकान्ता प्रमुख पांचसो कुमरातीयों ॥ पूर्वभव-तिगिछी नगरी जितशत्रुराजा, धर्मवृति अनगार प्रतिलाभे,यावत् सिद्धहुवे।।इति महाचंदका नववा अध्ययन समाप्तम्।। ___ दशा अध्ययन का उक्षेप-यों निश्चय हे जंबू ! उस काल उस समय में साकेत नगर था उत्तरकुर उध्यान, पासामीयक्ष, मित्रनंदीराजा, श्रीकंतादेवी, वरदत्तकुमार. वीरसेना प्रमुख पांचसो कन्या से पानी ग्रहण कराया ॥ भगवंत श्री महावीर स्वाजी पधारे, वरदत्तकुमार श्रावक बना. गौतम स्वामीजीने पूर्वभव पूछा-भगवंत फरमाते हैं-शतद्वारा नगरी के विमल वाहनराजाने धर्मरुची अनगार को प्रतिलाभकर नुष्यायु का बन्धकर यहां उत्पन्न हुवा, और शेष अधिकार सुबाहु कुमार जैसा जानना, पौषध में भगवंत के दर्शन की चिन्तबना की भमवंत पधारे, दीक्षाधारन की, आयुष्य पूर्ण कर-प्रथम देवलोक, wwwwwwwwwwwwanm Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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