SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - भवक्खएणं ट्ठिइक्खएणं अणंतरं चयंचइत्ता माणुरसं विग्गहं लाभहिति केवलं वोहिं बुझिाहिति २त्ता तहारूवाणं थेराणं अंतिए मुंडे जाव पव्वइस्सइ, सेणं तत्थ बहुहिं वासाइ समण्ण परियागं पाउणिहिति,आलोइय पडिकंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा, १९३ सणंकुमाकप्पे देवत्ताए उववपणे: तओमाणुस्स पवज्जा,बंभलोए, माणुस्सं महासुक्के, माणुस्सं, आरणए, माणुस्सं, सम्वदसिडिं॥सेणं तओअणंतरं उव्वहिता महाविदेहे जाव अड्डा जहा दढपइण्णे सिज्झिहिति ॥३३॥ एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव सपत्तणं सुहविवागाणं यावत् दीक्षाधारन करेगा. वह वहां बहुत वर्ष साधुपना पालकर आलोचना पतिक्रमणाकर समाधी से काल के अवसर काल प्राप्त हो सनतकुमार नामक तीसरे देवलोक में देवता होगा, वहां से चक्कर मनुष्य होगा, दीक्षाधारन करेगा, वहां पांचमे ब्रह्मदेवलोक में देवता होगा, वहां से मनुष्य हो संयमलेगा, वहां से। सातवे महाशुक्र देवलोक में देवता होगा, वहां से फिर मनुष्य होगा, संयम की आराधना कर इग्य रवे अरण में देवलोक में देवता होगा,वहां से फिर मनुष्य हो संयम की आराधना कर सर्वार्थ सिद्ध नामक महा-विमान देवता होगा, वह मुबाहकुमार का जीव वहां से अनन्तर निकलकर महाविदेह क्षेत्र में जन-लेगा,ऋद्धिंवत होगा. जिस प्रकार दृढप्रतिज्ञा कुमार का कथन उबवाइ सूत्र में कहा है उसही प्रकार याले कर्म का क्षपकर , मुक्तहोगा निर्वाणपावेगा सर्व दुःख का अंतकरेगा ॥ ३३ ॥ यों चिश्चय * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy