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सूत्र
अर्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
वाणुपुत्र चरमाणे जात्र दुइजमाणे जेणेव हत्थीसीसे णयरे जेणेव पुप्फकरंडए उज्जाणे जेणेव कयवणमाला पियरस जक्खरस जक्खायतणे तेणेव उवागच्छ २त्ता अहापडिवं उग्गह उगिव्हता संजमेणं तवसा जाब विहरइ ॥ २९ ॥ परिसा राया निग्गओ, तणं तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स तंमहया जहा पढमं तहा निग्गया धम्मोहिओ परिसाराया पडिगया || ३ • ॥ एणं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मंसच्चा णिसम्महट्टु जहा मेहो, तहा अम्मापियरो आपुच्छर, निक्खमणाभिसेओ ग्रामनुग्राम उल्लंघते जहां हस्तिशीर्ष नगर जहां पुष्पकरंड उध्यान जहां कृतवन माली यक्षका यक्षायतन था तां आये, आकर यथा प्रतिरूप साधु के योग्य अवग्रह अवगाहकर ग्रहणकर संजम तपकर अपनी आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे ॥ २९ ॥ परिषदा दर्शनार्थ आई, तब सुबाहु कुमार महा अडंबर कर पहिले की तरेही बंद करने गया, धर्मकथा कही, परिषदा पीछी गई ॥ ३० ॥ तत्र सुबाहु कुमार श्रमण भगवंत के पास धर्म श्रवणकर अवधार कर हृष तुष्ट आनन्दित हुवा जिस प्रकार कर मेघकुमारने अपने मातपिता से पुच्छा, प्रश्नोत्तर हुवा इस ही प्रकार प्रश्नोत्तर हुने हुना यावत् अनगार-साधु हुवा, इर्यासमिती समता यावत् ब्रह्मचारी बना, ॥
दीक्षा उत्सव भी तैसे ही
३१ ॥ सब वह सुबाहु
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* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
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