SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ r wmanmintimromanmkamom 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी में 'miksikhninashamitramaniammmmmmmmmmmmmmmminaru पासइ.२त्ता हट्ठ विउलं असणं ४ उवक्खडावेइ २त्ता मित्तणाइ आमतेइ ज़ाव सकारेइ २ समाणेइ पूसणंदिकुमारं देवदत्तं दारियं पट्टयं दुरुहेइ २ ता सेयापीएहिं कालसेहिं भेजावेइ २ ता वरणेवच्छाई करेइ २त्ता अग्गिहोम करेइ पूर्णदिकुमारं देवदत्ताए दारियाए पाणिगिण्हावेइ ॥ ४४ ॥ तएणं से वेसमणदत्तेराया पुसणंदिकुमारस्स देवदत्तं दारियं सम्बड्डीए जाव रवेणं महयाइड्डी सक्कारसमुदाएणं पाणिग्गहणं करेइ, देवहत्ताए भारियाए अम्मापियरोमित्त जाव परियणंच विउलं असणं ४ बस्थगंधमलालंकारिय अशनादि चारौ प्रकार के आहार को तैयार कराया, मित्रज्ञासीयों को बोला ये सत्कारे सन्माने पुष्प नंदी कूमरको देवदत्त के साथ पाटपर बैठाये. बैठाकर चांदी के सुवर्ण के कलशकर मानकराया, फिर विवह योग्य प्रधान वस्त्र पहनाये अग्निहोम किया, पृष्पनन्दी कुपारका देवदत्ताका हाथ मिलाप किया। पानी ग्रहण कराया ॥ ५४ ॥ तब फिर वैश्रनण दत्तराजा पुष्पनंदी कुमार को और देवदत्त को सर्व प्रकार की ऋद्धिकर यावत् सर्व प्रकार के द्रव्य कर बहुत सत्कार सन्मान कर बहुत परिवार से परिवरे पानी) ग्रहण' का उत्सव किया. तब फिर देवदत्ता भार्या के माता पिता मित्र यावत् परीजनको विस्तीर्ण अशनादि. चारों प्रकार के आहार कर वस्त्र गंध अलंकार कर सत्कार सन्मान कर विसर्जन किये ॥ ४५ ॥ * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी. मर्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy