SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र अर्थ +8+ एकादर्शमांग विपाक सूत्र का प्रथम स्कन्ध एत्त समाणी उप्फेण उष्फेणियं सीहसेणरायं एवं बघासी एवं खलु सामी ! ममं एकूण पंचसबत्तीसयाई, एकूणं पंचधाइसमाई इमीसे कहाए लडट्ठए सत्रणयाए, अण्ण मग सहावेइ एवत्रयासी- एवंखलु सीहसेणराया सामदेवीए मुच्छि ४ अधुयाओ अढाइ जाव अंतराणिय छिद्दाणिय जात्र पडिजागरमाणी विहरीतए, तंणणजइणं तब हिमन राजा को यह बात मालुम होते ही जहां कोप घर था जहां शामादेवी थी सहां आया, अकार (शामादेवी को चिन्ताग्रस्त यावत् आर्तध्यान ध्याती, देखकर यों कहने लगा- हे देवानुमिया ! किस कारन तू चिन्तग्रस्त हो आर्तध्यान ध्यारही है ? ।। १६ ।। तत्र शामादेवी सिंहसेन राजा के उक्त वचन श्रवण कर क्रोध के उफान में आविलबिलाट शब्द करती सिंहसेन राजा से यों बोली-यों निश्चय अहो (स्वामी ! मेरी एक काम पांचसो शोको — और एक कम पांचसो उनकी धाय माताओं, इस प्रकार जाना और परस्पर मिलकर इस प्रकार मिसलतकी कि-यों निश्चय सिंहसेन राजा शामादेवी से मूच्छित हुवा है, हमारी -पुत्रो यों का आदर सत्कार नहीं करता है, इसलिये शाया को अग्नि से शास्त्र से जहर आदि [प्रयोग से मारडालना, यों विचार कर मुझे मारने का अन्तर छिदर देखती हुई विचर रही हैं, इसलिये {नमालुम की वे मुझे किस कुमृत्युकर मारेगी, ऐसा जान में डरपाई त्राम पाइ चिन्ता ग्रस्तहो आर्त ध्यान Jain Education International For Personal & Private Use Only 42 दुःखः विपाक का नववा अध्ययन -देवदत्ता रानी का १५७ www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy