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488+ एकादशमांग विपाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 480
महया ॥ १२ ॥ तएणं से सीहसेणराया सामादेवीए मुच्छि९ ६ अवसेसाओ देवीओ णोआढाहिं णोपरिजाणाहिं अणाढाइमाणे अपरिजाणमाणे विहरइ ॥ १३ ॥ तएणं तासिं एगुणगाणं पंडण्हं देवीसयाइं एगुणाइ पंचमाओधाइसयाइं इमीसे कहाए लढाई समाणियाए- एवं खलु सीहसेणराया सामादेवीए मुछिए ३ अम्हं धूयाओ गोआढाइणोपरिजाणइ, तंसेयं खलु अम्हं सामादेवीं अग्गिपओगेणवा,
विसप्पओगेणधा,सत्थप्पओगणवा,जीवियाओविवरोवित्तए ।। एवं संपेहेइरत्ता सामादेवीए निहारन बहुत आडम्बर से किया, फिर सिंहसनराजा हुआ महाहिमवंत पर्वत जैसा ॥१२॥ सब वह सिंहसेनराजा अन्यदा सामादेवी से मच्छिन बना हुवा, दुमरी रानीयों का अनादर करता, उन का अनुमोदन भी नहीं करता उन का वचन मात्रले भी सन्तोष नहीं उपजाता रहने लगा ॥१३॥ तब एक कम पांचसों (४११ ) रानीयो और एक कम पांचने ( ४११) उन राणीयों की धाय माताओं ने इस प्रकार जानाकि सिंहसन राना एक शापारानीही में लुब्धहुभा इमारी पुत्रीयों का अनादर करता है, वचन मात्र से भी मन्तोपता नहीं है अच्छी भी नहीं जानता है. इसलिये अपन को श्रेय है कि शामादेवी को अनि के प्रयोगकर, विषके प्रयोगकर, शस्त्र के प्रयोगकर जीवित रहित कहे मारडाले. ऐसा विचार कर सामादेवीका
दुःखावपाक का-नववा अध्ययन-देवदत्तारानी का 8
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