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कूत्रमाणे अभिक्खणं २ -पूयकवलेय, रुहिरकवलेय, किमिकवलेहिय, बममाणंपासइ २ त्ता इमेयारूवे अज्झस्थिए ४ पुरापोणाणं जाब विहरइ, एवं संपेहेइ २त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे जाव पुत्वभवपुच्छा ॥ ६ ॥ जाव वागरणं एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेय जंबूद्दीवे २ भारहेवासे गंदिपुरेणामं णयरेहोत्था, मित्तेराया ॥ ७ ॥ तस्सणं मित्तस्स सिरीनाम महाणसिहोत्था अहम्मीए जाव दुप्पडियाणंदे ॥ ८ ॥ तस्सणं सिरियरप्त महाणसियस वहवे मच्छियाय, वागुरियाय
साउरियाय, दिण्णभत्ति, कल्लाकालिं वहवेसण्ह मच्छाय जाव पडागाइ १डागेये कर रहा है अक्रन्दन कर रहा है,पीप(रस्सी) के कुल्ल लोहीके कुल्ले कृमी जन्तु के कुल्ले सहित वमन करता हुवा देखकर अध्यवसाय उत्पन्न हुवा, यावत् भगवंत के पास आकर पूर्व भवकी पूछा की ॥ ६ ॥ भगवंतने कहा यों निश्चय हे गौतम ! उस काल उस समय में इस ही जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में नंदीपुर नाम का
नगर था, तहां मित्र नाम का राजा था. ॥ ७ ॥ उस मित्र राजा के श्रीया नाम का रसोइया था. वह Kअधर्मी याव कूकर्म करके आनंदपाने वाला था ॥ ८॥ श्रीया रसोइया ने बहुत से मछी-मच्छी मारने
७ वाले, वागुरी-पक्षी तीलरादि के घातक, खाटकी-चौपद के घातक इत्यादि को सदैव माहार पानी नतखा 1 मजदूरी देता था, वे मच्छी आदि मच्छीयों काछवे आदि जलचर जीवो,बकरे असे आदिक चौपद, नीबों।
418-एकादशमांग-विषाक सत्र का प्रथम श्रुत्स्कन्ध482
+2 दुःखविप्राक का-आठमा अध्ययन-सौर्यदत्त मच्छी का 8
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