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अर्थ
एकादशांग विपाकपुत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध
पढमरणं भंते ! अज्झयणस्स दुहविवागणं समर्पणं जाव संपत्तेर्ण के अड्डे पण्णत्ते ? ॥ १ ० ॥ तएण से सुहम्मे अणगारे जंबू अणगारं एवं व्यासी एवं खलु जंबू ! काणं ते समएणं मियगामे णयरेहोत्था वण्णओ ॥ ११ ॥ तरसणं मियगामरस' गरस्त बहिया उत्तरपुच्छि मे दिसीभाए चंदणपायचे णामं उज्जाणेहोत्था, सञ्चय वष्णओ ॥ १२॥ तत्थणं चंदणपायवस्त बहुभुज्झदेसभाए, सुहमस्स जक्खस्स जक्खा - तणे हीस्था, चिराईए जहा पुण्णभद्दे || १३ || तत्थणं मियगामे नगरे विजए नामं खत्तिए रायापरिवसई वण्णओ ॥ १४ ॥ तस्सणं विजयस्स खतियस्स मियाणामं देवी अंजू कुमारी का, अहां भगवन् ! इन में से प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? || १० ।। तब वे अनगार जम्बू अनगार से यों कहने लगे---यों निश्चय अहो जम्बू ! उस काल उस समय में नाम का नगर था वर्णन उचाइ सूत्र से जानना ॥ ११ ॥ उस मृगाग्राम नगर के बाहिर ईशान कौन में चंदनपादप नाम का उद्यान था, वह सर्व (छडी) ऋतु में सुखकारी वर्णन योग्य था ||१२||| उस चंदनपादप उद्यान के मध्य में सुधर्मा यक्ष का यक्षायतन ( मंदिर ) था, वह पूराना यावत् जैसा पूर्ण (भद्र यक्ष का वर्णन उवाइ सूत्र में चला है तैमा इस का भी जानना || १३ | उस मृगाग्राम नगर में विजय नाम का क्षत्रीय राजा राज्य करता था, वह वर्णन योग्य था ॥ १४ ॥ उल विजय राजा के मृगादेवी |
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दुःखविपाक का पहिला अध्ययन-मृगापुत्रका
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