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________________ सूत्र अर्थ 42 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी चित्रागय, ॥ ७ ॥ पढमरणं भंते ! सुखंधरस दुहविवागाणं रुमणणं जाय संपतेणं अट्ठे पण ? || ८ || तरणं सुहम्मे अणगारे जंबू अणगारं एवं वयासी एवं खल जंबू ! समणेणं आईगरेणं जाव संपत्तेणं दुहविशगाणं दसअज्झयणा पण्णा, तंजा - १ मियापुते, २ उज्झियए, ३ अभग्ग, ४ मगडे, ५ वहस्सइ, ६ नंदी, उंबर, ८ सोरियदत्तेय, ९ देवदत्ताय, १० अंजय ॥ ९ ॥ इणं भंते ! मिणेणं आईगरणं जात्र संपत्तेणं दुहवित्रागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा मियापुत्ते जात्र अंजूय, Jain Education International श्रुतस्कन्ध कहे हैं, उन के नाम --- १ दुःख विपाक और २ सुख विपाक ॥ ७ ॥ अहां भगवन् ! प्रथम श्रुतस्कन्ध दुःख विपाक के श्रमण भगवन्त यावत् मुक्ति पधारे उनोंने क्या अर्थ कहा है ? ॥ ८ ॥ तब वे सुधर्मा अनगार जम्बू अनगार से यों कहने लगे-यों निश्चय हे जम्बू ! श्रमण भगवन्त धर्म की आदि के करता यावत् मुक्ति पधारे उनोंने दुःख विपाक के दश अध्ययन कहे हैं. महावीर स्वामी उन के नाम का ६ नंदीवृधन कुमार का, ७ और १० अंजू कुमारी का || १ | १ मृगापुत्र का, २ उज्झित कुमार का, ३ अभंगसेन चोर का, ४ सकट कुमार का ५ बहस्पति कुमार उम्बरदत्त कुमार का, ८ सौर्यदत्त कुमार का, यदि अहो भगवन् ! श्रमण भगवन्त महावीर के करता यावत् मुक्ति पधारे उनोंने दुःख विपाक के दश अध्याय कहे हैं तथा 9 For Personal & Private Use Only ९ देवदत्ता रानी का, स्वामी धर्म की आदि मृगापुत्र का यावत् * प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्व मलदज़ासी www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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