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एकादशमांग-विपाक मूत्र का मैंथम श्रुत्स्कन्ध 1888
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दुबलणाय, गिलाणाणय, बाहियाणय, रोगीयाणय, सणाहाणय, अणाहाणय, सम. जाणय, माहणाणय, भिक्खणाणय, करोडियाणप, कप्पडियाणय, आउराणय, अपगइयाणं मच्छमंसाई, उवादिसइ,अप्पेगइयाणं कच्छमंसाई, उवदिसइ अप्पेगइयाणं गाहमसाइ उवदिसइ, अप्पेगइयाणं, मगरमसाई उवदिसइ, अप्पगइयाणं सुसमारमंसाई उवदिसइ, अप्पेगइयाणं अयमंसाई, उपदिसइ एवं-एला-रोज्झा-सूयर-मिगससथ. गोमंसाई महिसमंसा अप्पेगइयाणं तित्तिरमंसा, अप्पेगइयाणं बटक-लवक
कयोत-कुक्कुड-मयुर. अण्णसिंच बहणं जलयर थलयर खहयरामाईणं मंसाइ राना के अन्तेपुर में और भी बहुत युवराज प्रधान सेनापति यावत् मार्यवाही के घमि तथा बहुत मे दुर्बल रोगीयों व्याधी यो-उनाथ अनाथसाधु ब्राह्मण अनेक पिक्षाचारों कापडी आदिरोगीयों जो की चिकित्साके, अजान थे उन की चिकित्सा औषध करता हवा, उनको पथ्य के लिये कितनक को मच्छ का मांस खाने का उपदेशदेता, कितनेक को काछो के मान स्वाने का उपदेश देता, कितनेक को ग्राहाका मोसम्बाने का उपदेश देवा, कितनेक को मगर का मांस खाने का उपदेशदता, कितनेक को सुसमार का मामखाने का उपदेवदेता, ऐसे ही कितीकों-मेंहका-रोज्झका-सूबर का-माका-सूसले (खरगोर) का गायका-भेनेका-कितनक को तीतर का-बटेर का-लवे का-परेचे को यूगे का- मयुर का इत्यादि अनेक प्रकार के जल घर का
दःखरिपाकका-माता अध्ययन-उम्बरदत्त कुमार का 6
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