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________________ दयइ,अप्पेगएएहत्थंडयाहिं बंधावेइ, अप्पेगएए पायंडुयाणं बंधावेइ, अप्पेगएर हडिबंधणं करेइ, अप्पेगएए णियलवंधण करेइ, अप्पेगएए संकोडिय करेइ, अप्पेगएए संकलबंधणं करेइ,अप्पगएए हथिच्छिष्णए करेइ,जाब सत्थाबाडिए करेइ,अप्पेगएए वेणुलयाहिय जाव वायरासीहिय हणावेइ, अप्रेगएए उत्ताणए करेइ २न्ता उरेसिल दलावेइ २ ता लेउलं बुभावेद,परिसंहिं उकंपावेइ,अप्पगएए तंतीहिय जाय सुत्तरज्जुहिय हत्थेसुय पादेसुय बंधावेइ, अगडमिउ लंपाणगं पजेइ,अप्पेगएए असिपन्तेहिय जाव कलंबचीरपत्तेहिय mahanmRAAnnnnnnnnn 488 एकादशमांम विपाक सूत्र का प्रथम श्रुतस्कम्य 48+ दुःखविपाक का छठा अध्ययन-नंदीसेन कुमार का कितनेक को बडी सांकलों से छोटी सांकलों से रहे इन्धन बन्धता. कितनेक के अंग संकोच कर दृढवन्ध कर रखता, कितनेक के अंग मरोडकर तोडता, कितोक के हस्त छदन करता, कितनेक के यावत् शब्दसे प्रत्येक अंगोपांग का छेदन करता, खङ्गादि कर गर्दन मारता, कितनेक को बांस की लता-(छडी) कर मारता, कितनेक को यावत् रस्ती-बाबुक कर परता, कितनेक को चित्ता सुलाकर हृदय पर मिलान रखाता, ऊपर लकडे घराला दोनों तरफ पुरुषों के पास दधाता, कितनेक को तांत से यावत् मृत की डोरी कर हाथ पांव बन्धनकर कूत्र में उलटा लटकाता, ऊपर नीचे उम को सरकाता हुवा इस प्रकार पानी में डूबता, कितनेक को स्वगादिशस्त्र कर छेदता, यावत् करवत शस्त्र विशेष उस से तराछ कर-छीलकर - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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