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48+ एकादशमांग-विपाकमूत्र का प्रथम श्रुतस्फ
एवं खलु गोयमा ! वहस्सइदत्ते पुरिहिए पुरापोराणाणं जाव विहरइ ॥ २७ ॥ वहस्सइदत्तेणं भंते ! दारए इओकालगए काहं गच्छिहिति कहिं उपवाजिहिंति ? गोयमा ! वहस्सइंदत्तेणं दारए पुरोहिए चउसटुिं वासाइं परमाऊपालिता, अजेव तिभागावसेसेदिवसे सूलीमिणकए समाणे कालमासे कालंकिच्चा, इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए. संसारो तहेव पुढवीए, तओ हत्थिणाउरे णयरे मियत्ताए पञ्चाइस्सइ, सेणं वस्थवाउरिएहि वहिए समाणे तत्थेव हत्थिणाउरे सेट्टिकुलंसिं पुत्तत्ताए, बोहिं सोहम्मे
कप्पे, महाविदेहे सिज्झिहिंति. णिक्खेबो ॥ २८ ॥ पंचमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ५॥ प्रकार बन्ध करने की मारने की आज्ञा दी है ॥ २६ ॥ यों निश्चय है हे गौतम ! वृहस्पति पुरोहित पूर्वजन्म में जन्मान्तर में बहुत काल के संचित कर्मों के फल भोगवता हुवा विचरता है ॥ २७ ॥ अहो भगवन ! यह बृहस्पतिदत्त यहां से आयुष्य पूर्ण कर कहां आयगा कहां उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! बहस्पतिदत्त पुरोहित चौसट वर्षका उत्कृष्ट आयुष्य भोगव कर आज दिन के तीसरे भाग में शुली से भिन्न शरीर किये काल के अवसर काल पूर्ण करके प्रथम रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा, फिर मगा पुत्र की तरह बहुत काल संमार में परिभ्रमण कर यावतू पृथ्वी से निकलकर हस्तिनापुर नगर में मृगपने उत्पन्न होगा, वह मृग वागरी के हाथ से मृत्यु पाकर उस ही हस्तिनापुर नगर में शेठ के कुल में पुत्र
उत्पन्न होगा समर्कित युक्त चारित्र अंगीकारकर सौधर्मा देवलोकमें देवताहोंगा. वहांसे महाविदेह क्षेत्र में जन्मे सले दीक्षा ले, मुक्ती जावेगा॥२८॥निक्षेप, दुःख विपाक सूत्रका बृहस्पतिदत्तका पांचवा अध्ययन संपूर्ण॥२॥
48 दुःखविपाकका-पांचावा अध्ययन-बृहपतिदत्त का
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