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वहस्सइदत्ते दारए उदयणस्सरण्णो पुरोहिए उदयणस्स रण्णो अंतेउरे वेलासुय अवेलासुय कालेसुय अकालेसुय राउय रियालेय पविसमाणे, अण्णयाकयाइ पउमावइदेवीए सद्धिं संपलग्गेयावि होत्था, पउमावइ देवीए सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाण विहरइ ॥ २५ ॥ इमंचणं उदयणे राया बहाए जाव विभूसिए जेणेव पउमावईदेवी तेणेव उवागच्छइ २ त्ता वहसाइदत्तं परोहियं पउमावईए सद्धिं उरालाइ भोगभोगाई भुंजमाणे पासइ २ त्ता आसुरुत्ते तिबलियं भिउडिं णिलाडे साह९, वहस्सइदत्तं
पुरोहियं पुरिसेहिं गिण्हावेइ २ ता जाव एएणं विहाणेणं यन्झ आणवइ ॥ २६ ॥ तब फिर बृहस्पतिदत्त बालक उदयन राजा का पुरोहित हुवा, उदयन राजा के अंसेपुर में, वक्त में वे वक्त में भोजन के काल, शयन के काल, तीसरे प्रहर प्रथम प्रहर रात्रि को सन्ध्या को प्रवेश करता हुवा, एकदा प्रस्तावे पद्मावती देवी के के साथ आसक्त हुवा लुब्ध बना, यावत् १मावती रानी के साथ उदार प्रधान मनुष्य सम्बन्धी भोगोपभोग भोगवता विचरने लगा !॥ २५ ॥ इस वक्त उदयन राजा स्नान करके यावत् वस्त्र भूषण से भूषित हो जहां पद्मावती देवी थी तहां आया, तहां आकर वृहस्पतिदत्त पुरोहित को पद्मावती रानी के साथ उदार प्रधान भोग भोगवता हुवा देखा, देखकर शीघ्र क्रोधातुर होकर त्रीवली निलाड पर चढाकर वृहस्पति को सुभटों के पास पकडकर हे गौतम ! तुमने देख आये इस
4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
** प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायनी ज्वालाप्रसादजी *
अर्थ
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