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________________ 48 एकादशमांग-विपाकपुत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध8+ चउण्णं मासाण चत्तारि२, छह मासाणं अटू२, संवच्छरस्स सोलस्स२, जाहेर विथणं जियसत्तूणं राया परबलेणं अभिभुज्जइ ताहे तहिं वियणं से महेसरदत्ते पुरोहिए अट्ठसयं माहणं दारगाणं, अट्ठसयं खत्तिय दारगाणं, अट्ठसयं वइस्स दारगाणं,अटुसयं । सुद्ददारगाणं, पुरिसेहिं गिण्हावेइ २ ता तेसिं जीवंताणं चेव हय उडियाओ गिण्हावे २ त्ता जियसत्तुस्स रण्णो संतिहोमं करेइ ॥ १५ ॥ तएणं से परघले खिप्पामेव विसइ वा पडिसेहिजइबा ॥ १६ ॥ तएणं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे ४ . सुबहु पावं जाव समजिणित्ता तीसंवास सयाई परमाउपालिता, कालमासे कालं है पकडाकर उक्त प्रकार मारता था, चौमासीर( चार २ महीने ) में चार ब्राह्मण के यावत् चार शूद्र के यो बालको को मारता था, छे छे महीने में आठ ब्राह्मण के यावत् आठ शूद्र के यों ३२ लडको को इमारता था, और वर्षों वर्ष सोला ब्राह्मण के बालक यावत् सोला शटक बालक यों ६४ बालकों को मार ता था, और जिस २ वक्त जितशत्रु राजा पर शत्रु के कटक का भय तथा ओचाट उत्पन्न होता था तब १०८ ब्राह्मण के पुत्र, १०८ क्षत्री के पुत्र, १०८ वैश्य के पुत्र और.१०८ शूद्र के पुत्र, यों ४३२ लडको को आपके पास पकडाकर मंगाता उनका जीवतेका कलेजका मांस पिंड निकालकरजितशत्र राजा के मख शान्ति के लिये होम करता था॥१५|| इस प्रकार करने से अन्यका कटक कितनाही प्रवल्प होतो पीछा फिर जाता था, दिशोदिश भगनात था, या विंद्वश पाता था ॥१६॥ -~-unmaavamahanmammmmmmmmmmAAAAmawaanwa दुःखविपाक का-पांचवा अध्ययन-ब्रहस्पतिदत्त का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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