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________________ रिद्वित्थमिय ॥ ११ ॥ तत्थणं सव्वओभद्दे णयरे ‘जियसत्तू णाम राया होत्या ॥ १२ ॥ तत्थणं जियसत्तुस्स रण्णो महेसरदत्तेणामं पुरोहिए होत्था, रिउबेय ४ जाव अत्थव्वण कुसलेयावि होत्था ॥ १३ ॥ तएणं से महेसरदत्ते पुरोहिए जियसन्तु स्स रपणो रजबल विवरण द्वयाए कल्लाकल्लिं एगमगं माहण दारगं एगमेगं खसिय दारंगं, एगमेगं, वइस्स दारगं, एगमेगंसुद्द दारगं गिण्हावेइ २ त्ता तेसिं जीयतगाणं चव हियेउडए गिण्हावेइ २ त्ता जियसत्तुस्स रणो संति होमं करेइ २ ॥ १४ ॥ तएणं से महेसरदत्ते पुरोहिए अट्ठमी चउदिसीसु दुवे २ माहण खत्तिय वइस्स सुद्दे, अंबुद्वीप के भरत क्षेत्र में सर्वतो भद्र नाम की नगरी ऋद्धिस्मृद्धि युक्त थी ॥ ११. उस सर्वतो भद्र नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था ॥ १२ ॥ जितशत्रु राजा के महेश्वरदत्त नाम का पुरोहित था, वह ऋजु आदि यावत् अवनवेद में कुशल था॥१३॥ तब फिर वह महेश्वरदत्त पुरोहित जितशत्रु राजा के राज्यबल - की वृद्धि के लिये सदैव (दिन २ परते ) एकेक ब्राह्मन का पुत्र, एकेक क्षत्रीका पुत्र, एकेक वैश्य का F पुत्र और एकेक शूद्रका पुत्र यों चार लडको को पकडकर उन के जीवते का हृदय का मांपिंड निकाल Me कर जितशत्रु राजा के मुख शान्ति के लिये होम करता था, ॥ १४ ॥ तब फिर वह महेसरदत्त पुरोहित, 17 अष्टमी चतुर्दशी के दिन-दो ब्राह्मण के, दो क्षत्री के, दो वैश्य के, और दो शूद्र के यों ८ बालको को मुनि श्री अमोलक ऋषिजी अर्थ प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी * 4.3 अनुवादक-वाल For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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